मोहम्मद सुलेमान
मोतीगंज गोंडा। बृहस्पतिवार को पूर्व माध्यमिक विद्यालय काजीपुर नवाबगंज गोंडा में विज्ञान शिक्षक देवता प्रसाद जायसवाल द्वारा घास खाने वाले जंतुओं में पाचन के बारे में कक्षा 7 के बच्चों को विस्तृत रूप से अध्ययन कराया गया। गाय भैंस बकरी भेड़ आदि शाकाहारी जंतु जो घास फूस खाने वाले होते हैं। उनके आमाशय में एक भाग ऐसा होता है, जहाँ घास फूस खाकर निगलकर भंडारित कर लेते हैं। आमाशय के इस भाग को हम "रूमेन "कहते हैं ।रूमैन में आंशिक रूप से भोजन का पाचन होता है, जिसे "जुगाल "कहते हैं । फिर जंतु इस आमाशय में से अधपचे भोजन को छोटे-छोटे पिंडको के रूप में फिर से मुख में लाते है और इसे धीरे-धीरे चबाते हैं। यह चबाने की प्रक्रिया घास फूस खाने वाले जंतुओं में होती है, जिसे "रोमनथन "कहते हैं ।और ऐसे जंतु त "रोमनथी "या" रूमिनेंट" कहलाते है ।
गाय ,भैंस ,आदि जंतुओं का मुख्य भोजन घास -फूस, भूसा ,आदि होता है, जिसमें "सैलूलोज" प्रचुर मात्रा में पाया जाता है ।इसका पाचन आसानी से नहीं होता। रूमिनेंट्स यानी घास खाने वाले जंतुओं के ,छोटी आंत और बड़ी आंत के बीच एक लंबी संरचना होती है जिसे "अंधनाल "या "सीकम "कहते हैं ।भोजन में उपस्थित "सैलूलोज "का पाचन इसी स्थान पर होता है। क्योंकि "सीकम "में एक विशेष प्रकार का "एंजाइम" स्रावित होता है जो सेलुलोज का पाचन करता है ।यह अंधनाल मनुष्य में "अवशेषी अंगों" के रूप में पाया जाता है जो कार्य में नहीं होताहै। इसीलिए मनुष्य घास पूस का पाचन नहीं कर पाता है।
घास खाने वाले जंतुओं में पाचन के बारे में कक्षा 7 के बच्चों को विस्तृत रूप से अध्ययन कराया गया