अजीजुद्दीन सिद्दीकी
मनकापुर गोंडा। सोमवार 9 दिसंबर को मनाया जाएगा ग्यारहवीं शरीफ का त्यौहार ग्यारहवीं शरीफ सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय द्वारा मनाये जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। जिसे इस्लाम के उपदेशक और एक महान संत अब्दुल क़ादिर जीलानी के याद में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि वह पैगंबर मोहम्मद के वंशज थे क्योंकि उनकी माँ इमाम हुसैन की वंसज थी, जोकि पैगंबर मोहम्मद के पोते थे। उन्हें इस्लाम को पुनर्जीवित करने वाले व्यक्ति के रुप में भी जाना जाता है क्योंकि अपने उदार व्यक्तित्व और सूफी विचारधारा द्वारा उन्होंने कई लोगो को प्रभावित किया।इसके साथ ही अब्दुल कादिर सुफी इस्लाम के भी संस्थापक थे। उनका जन्म 17 मार्च 1078 ईस्वी को गीलान राज्य में हुआ था, जोकि आज के समय ईरान में स्थित है और उनके नाम में मौजूद जीलानी उनके जन्मस्थल को दर्शाता है। प्रतिवर्ष रमादान के पहले दिन को उनके जन्मदिन के रुप में मनाया जाता है और हर साल के रबी अल थानी के 11वें दिन को उनके पुण्य तिथि को ग्यारहवीं शरीफ के त्योहार के रुप में मनाया जाता है।
ग्यारहवीं शरीफ क्यों मनाया जाता है?
ग्यारहवीं शरीफ का पर्व महान इस्लामिक ज्ञानी और सूफी संत हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी के याद में मनाया जाता है। उनका राज्य उस समय के गीलान प्रांत में हुआ था, जोकि वर्तमान में ईरान में है। ऐसा माना जाता है कि हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी पैगंबर मोहम्मद साहब के रिश्तेदार थे। वह एक अच्छे विचारों वाले आदमी थे। अपने व्यक्तित्व तथा शिक्षाओं द्वारा उन्होंने कई लोगो को प्रभावित किया।
हर वर्ष को हिजरी कैलेंडेर के रबी अल थानी माह के 11वें दिन उनके पुण्यतिथि के अवसर पर उनके महान कार्यों को याद करते हुए, ग्यारहवीं शरीफ का यह त्योहार मनाया जाता है। वास्तव में एक प्रकार से यह उनके द्वारा समाज के भलाई और विकास के कार्यों के लिए, उन्हें दी जाने वाले एक श्रद्धांजलि होती है। जो इस बात को दर्शाती है कि भले ही हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी हमारे बीच ना हो लेकिन उनके शिक्षाओं को अपनाकर हम समाज के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है।
ग्यारहवीं शरीफ कैसै मनाया जाता है - रिवाज एवं परंपरा
सुन्नी मुस्लिमों द्वारा ग्यारहवीं शरीफ के त्योहार को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन बगदाद स्थित उनकी मजार पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है।
इस दिन बगदाद में दर्शनार्थियों का एक मेला सा उमड़ पड़ता है और कई सारे श्रद्धालु तो मजार पर एक दिन पहले ही आ जाते है। ताकि वह सुबह की नमाज के दौरान वह वहां प्रर्थना कर सके। इस दिन भारत में कश्मीरी मुस्लिम समाज के लोग भारी संख्या में श्रीनगर स्थित अब्दुल क़ादिर जीलानी मस्जिद में प्रर्थना करने के लिए इकठ्ठा होते है।